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मंगलवार, अप्रैल 30, 2013

"विवाह" नामक संस्था का स्वरूप खराब हो रहा है


दूषित मानसिकता वाली अपनी पत्नी को समर्पित चंद शब्द

"मत खुश हो कि बर्बादी वाली हवा का रुख हमारी ओर है!
भूल मत जाना यह आवारा हवा कब किस ओर मुड जाये!!"

"वेवफाई करके हमारी बर्बादी से तुम बहुत खुश हो !
हमें फख्र है अपनी बर्बादी पर कि वफ़ा करके बर्बाद हुए" !!




आज मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए कुछ दूषित मानसिकता वाली लडकियां अपने शरीर तक को दांव पर लगा देती हैं और पति-पत्नी के बीच स्थापित हुए संबंधों की कीमत तक वसूल करती या मांग करती हैं. बस उनकी दौलत की हवस पूरी होनी चाहिए और कुछ दूषित मानसिकता वाले उसके परिजन अपनी बेटी के शरीर की कीमत तक वसूलने लगें है या यह कहे तो अतिशोक्ति नहीं होगी कि अपनी बेटियां के नाम पर सौदेबाजी करते हुए धंधा (वेश्यावृति) करने लगे है. 
        यदि कोई राह चलते चोर, लुटेरा या डाकू आपकी गर्दन पर चाकू या रिवाल्वर लगाकर आपके पास मौजूद धन मांगे तो आप अपनी जान बचाने के लिए अपना सब कुछ दे देंगे या कोई चोर, लुटेरा या डाकू आपके किसी परिजन या सन्तान का अपहरण करके ले जाये और उसको छोड़ने के एवज में आपसे जो कीमत मांगेगा, आप उस समय बेशक कर्ज लेकर उसका मुंह भरेंगे, क्योंकि जिस व्यक्ति/इंसान की "आत्मा" या "इंसानियत" मर गई हो. आप उससे दया और मानवता की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. 
          आज इसी प्रकार से कुछ दूषित मानसिकता वाले वधू पक्ष के वर पक्ष पर दहेज कानूनों का दुरूपयोग करते हुए फर्जी केस दर्ज करवाते देते है और यह कहे तो गलत नहीं होगा कि गले पर चाकू रखकर सौदेबाजी होती है. मुंह मांगी कीमत मिलने पर केस वापिस ले लिया जाता है. आज इन्ही जैसी कुछ दूषित मानसिकता वाली लड़कियों के कारण "विवाह" नामक संस्था का स्वरूप खराब होता जा रहा है. इसमें पैसों के लालची पुलिस वाले, वकील और जज आदि इनकी मदद करते हैं. यहाँ गौरतलब है जब ऐसे केस "हाईकोर्ट" से खारिज होते हैं तब अंधे-बहरे बैठे जज भी "वर" पक्ष पर क़ानूनी व्यवस्था का कीमती समय खराब करने के नाम जुरमाना लगाते हैं. ऐसे मामलों में आज तक इतिहास रहा है कि कभी किसी लड़की वालों पर जुरमाना किया हो, क्योकि "हाईकोर्ट" में बैठे जज भी भेदभाव करते हुए महिलाओं के पक्ष में "फैसला" देकर वाहवाही लूटने के साथ अपने "नम्बर" बनाने में व्यस्त रहते हैं. 
              मैं अपनी दूषित मानसिकता वाली पत्नी के दुर्व्यवहार के बाबजूद अपने जैन धर्म से नहीं डिगा यानि मैंने अपनी पत्नी पर कभी हाथ नहीं उठाया था. उसकी हिंसा का बदला प्रतिहिंसा से नहीं दिया, क्योंकि अच्छे और बुरे इंसान में फिर क्या कोई फर्क रह जायेगा.  
       अपने माता-पिता और जैन धर्म से मिले संस्कारों के अनुसार मैं अच्छी व सभ्य लड़कियों/महिलाओं का बहुत आदर-सम्मान करता हूँ. मेरा मानना है कि यह वहीँ ही भारत देश की नारियां है. जिन्होंने मेरे आदर्श नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, श्री लालबहादुर शास्त्री, शहीद भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि जैसे अनेक वीरों, महापुरुषों और क्रांतिकारी नौजवानों को जन्म दिया है. आप विचार करें कि "क्या ऐसी विचारधारा रखने वाला एक सभ्य व्यक्ति और बुध्दिजीवी अपनी पत्नी को दहेज लाने के लिए प्रताडित कर सकता है ? आपको सनद होगा कि एक पत्रकार समाज में फैली कुरीतियों का खात्मा के लिए अपनी लेखनी के माध्यम से विरोध करते हुए अपना पूरा जीवन तक न्यौछावर कर देता है. वैसे जैन धर्म में बलिदान, क्रोध और त्याग आदि पर बहुत अच्छा साहित्य है. मैंने खूब पढ़ें भी हैं और अपने जीवन में उनका अमल भी किया. मगर अचानक मेरी पत्नी के बदले हुए व्यवहार और उसके परिजनों द्वारा द्वेष भावना, बदला लेने की भावना, लालचवश किये झूठे केसों ने मुझे बहुत अधिक तोड़ दिया था. इस कारण मुझे बहुत गहरा मानसिक आघात लगा.जिसके कारण ही "डिप्रेशन" में चला गया था.लगभग सात-आठ साल वैवाहिक विवादों और चार-पांच साल तक कोर्ट-कचहरी के साथ पुलिस कार्यवाही हेतु चक्कर लगाते-लगाते शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से काफी टूट गया था. फ़िलहाल मुझे सम्भलने में थोडा समय जरुर लगेगा. 

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सोमवार, मार्च 25, 2013

यदि आपको क्रोध आता है तो जरुर पढ़े/देखें/सुनें ?

दोस्तों ! कहा जाता है कि क्रोध आदमी के विवेक को खा जाता है.यदि आपने नीचे लिखें लिंकों को ध्यान से सुन लिया तो मुझे उम्मीद है. भविष्य में आपको क्रोध नहीं आएगा और यदि आया भी कम आएगा या क्रोध आने पर आप बहुत मुस्करायेंगे. ऐसा मुझे विश्वास है. यह कार्यक्रम उत्तम नगर में ही हुआ था. इसमें मेरी अनेक स्थान पर फोटो और प्रश्न भी है और जबाब है. मेरे पास सी.डी के अनुसार चार भाग है. मगर यहाँ यह आठ भाग में है. इसने मुझे "डिप्रेशन" की बीमारी से उबरने में भी काफी मदद की थी. इस कैसेट से प्राप्त ज्ञान से अपनी पत्नी के झूठे दहेज के केसों ( धारा-498A, 406 के तहत एफ.आई.आर.नं.138/2010 दिनांक:13/05/2010 थाना-मोतीनगर,दिल्ली ) में फंसाए जाने पर तिहाड़ जेल में एक महीना(आठ फरवरी से सात मार्च 2012) बहुत आसानी से व्यतीत कर पाया था. वैसे जैन धर्म में बलिदान, क्रोध और त्याग आदि पर बहुत अच्छा साहित्य है. मैंने खूब पढ़ें भी थें और अपने जीवन में उनका अमल भी किया. मगर अचानक मेरी पत्नी के बदले हुए व्यवहार और उसके परिजनों द्वारा द्वेष भावना, बदला लेने की भावना, लालचवश किये झूठे केसों ने मुझे बहुत अधिक तोड़ दिया था. उसके कारण मुझे बहुत गहरा आघात लगा था.
1. खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/qAWGMZrzYiU
2.
खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/7wxY4WsApWI
3.
खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/B-4aIVwaShA
4.
खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/-tk6nF4II-o
5.
खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/F2u8rgd3J9I
6.
खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/khFSf3WQqRM
7.
खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/5FyLU14F9Ow
8.
खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/c0juHM3dTwQ 


शुक्रवार, अक्तूबर 26, 2012

दहेज न लेने पर भी सजा मिलती है (टिप्पणियाँ)

दोस्तों  यह सब मैंने अपनी फेसबुक की "वाल" पर एक लेख "दहेज न लेने पर भी सजा मिलती है" लिखा था. उसके बाद मेरे अन्य दोस्तों / शुभचिन्तकों की टिप्पणी आई. उसमें से कुछ टिप्पणी और उसकी प्रतिक्रिया यहाँ पर रख रहा हूँ. 
Shivraj Prajapati रमेश जी आप वास्तव में बहुत परेशान हुये हैं ....
रमेश कुमार सिरफिरा Shivraj Prajapati जी, दिल्ली पुलिस की जाँच अधिकारी ने पैसे लेने के लिए मुझे बहुत परेशान किया था. पैसे लेकर भी दिल को शांति नहीं मिली तो और अधिक पैसो की मांग करने लगी,यहाँ तक मेरे "लिंग" पर करंट लगाने की धमकी भी दी और मुझे अनेकों तरीके से परेशान रखा. दिल्ली पुलिस कमिश्नर युध्दवीर सिंह डडवाल के पास शिकायत भी की मगर कोई कार्यवाही नहीं हुई, क्योंकि सबको अपना हिस्सा मिलता है. राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के पास "इच्छा मृत्यु" का भी प्रार्थना पत्र लिखा था. लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ. यह है हमारे देश की न्याय व्यवस्था. जो सिर्फ "अन्याय" के सिवाय मुझे कुछ नहीं दें पाएगी.
दिनेशराय द्विवेदी फर्जी मुकदमा है तो खारिज हो जाएगा। अब मुकदमा तो सहन करना होगा। तभी तो जब बरी होंगे तो आप को खुशी हो सकेगी। सरकार गरीब है भाई। उस के पास अदालतें खोलने और जजों को नियुक्त कराने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। ईंधन पर पर्याप्त टैक्स लगाने पर भी यह हाल सरकार का है। यदि अदालतों की पर्याप्त व्यवस्था करनी पड़े तो आप खुद सोचें कि पेट्रोल का दाम कितना हो जाएगा। जनता कष्ट पाएगी। इस लिए अदालतें नहीं खोली जा सकतीं। आखिर जनता को क्यों कष्ट दिया जाए। वह पहले ही कम कष्ट में नहीं है। दिनेशराय द्विवेदी पुलिस के लिए जो कुछ फरियादी और उस के लाए हुए सच्चे-झूठे गवाह कह दें वही सच है। क्ई बार एफआईआर के मुताबिक गवाहों के बयान लिख लिए जाते हैं। इसी से आरोप पत्र बनता है। पहली नजर मं यह माना जाता है कि जो कुछ पुलिस द्वारा सबूत पेश किए हैं वे सत्य सिद्ध हो सकते हैं। इसी आधार पर मुकदमा चलाया जाता है। अधिकांश आरोप पत्र मिथ्या साबित होते हैं। इस कारण फरियादी चाहता है कि सजा हो न हो मुकदमा लंबा चलना चाहिेए। जिस से अभियुक्त को परेशान किया जा सके। त्वरित विचारण के लिए पर्याप्त अदालतें नहीं हैं। ऐसे में जनता को पीड़ा तो भुगतनी ही होगी।
रमेश कुमार सिरफिरा Shivraj Prajapati का कहना कि-सर मै इस सम्बन्ध में ज्यादा कमेन्ट नहीं कर सकता लेकिन हम अपने यहाँ कोई ऐसा मामला आने पर माननीय न्यायलय के निर्देशों के अनुसार अंत तक परिवार को बचाने का प्रयास करते हैं, और बहुत मामलों में हम सफल भी हुये हैं. पुलिस का संवेदनहीन ब्यवहार उचित नहीं रहता. मेरी शुभ कामनाएं हैं की आप की बात जल्दी सुनी जाये और आपको न्याय मिले. रह गयी इच्छा मृत्यु की तो अभि उसकी जरुरत नहीं है हम लोग आपसे बहुत प्रेरणा ले रहे हैं, आप अलख जगाते रहे , अभि समाज को आपकी बहुत जरुरत है . वाह पथ क्या पथिक कुशलता क्या जिस पथ पर बिखरे शूल न हों, नाविक की धैर्य परीक्षा क्या जब धाराएँ प्रतिकूल न हों...हम सब आपके साथ हैं समय आने पर सब ठीक हो जायेगा यह समस्या प्रारब्ध मान कर स्वामी जी का प्रसाद मानकर लीजिये सब ठीक हो जायेगा .
रमेश कुमार सिरफिरा Shivraj Prajapati जी, मेरे पास कई लोगों ने अपने अनुभव बांटे थें. उसी के आधार पर कह रहा हूँ कि आप बुरा ना माने आपके यु.पी. में तो बहुत बुरा हाल है. क्या आप जितने क्षेत्र के सहायक एस.पी है उतने इलाके के लिए मुझे सार्वजनिक (फेसबुक पर) वादा कर सकते हैं कि-दहेज मांगने के जितने भी केस दर्ज होते हैं. उनके केस पर अतिरिक्त ध्यान रखकर उन्हें परेशान होने से बचाने की कोशिश करेंगे और उनकी सही जाँच (आरोप पत्र में दर्ज) के नाम पर पैसों के लिए तंग किये जाने वाले शोषण पर अलग से ध्यान रखें और आज के युवा और खासतौर पर किसी बुध्दिजीवी (पत्रकार, संपादक, लेखक, कवि आदि) का शोषण नहीं होने देंगे. उनका शोषण होने पर वो अपने लेखन पर ध्यान नहीं लगा पाते है और उनका सारा कार्य (मानसिक शांति ना होने के कारण) बंद हो जाता है. इस कारण वो बेचारे भूखे मरते हैं और बहुत अधिक स्वाभिमानी होने के कारण "भीख " भी नहीं मांग सकते हैं. हम बस यह कहते कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें. धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है.
Vijesh Patidar muje bhi isi tarha ke juthe arop me fasaya gaya hai.me bahot dukhi hu.aatmhatya hi aakhri rasta bacha hai
रमेश कुमार सिरफिरा Shivraj Prajapatiजी का कहना है कि रमेश जी ऐसा नहीं है उ.प्र. और यहाँ की पुलिस के विषय में आपकी धारणा गलत है. किसी अपवाद पर न जाते हुये मै यही कहना चाहता हूँ की उ.प्र. पुलिस किसी भी निर्दोष का उत्पीडन नहीं करती यहाँ थानों में पीड़ितों की सुनवाई होती है विवेचना का गुण दोष के आधार पर निस्तारण होता है दिल्ली के बाहर आकर देखिये हमारी पुलिस में बहुत सकारात्मक बदलाव आये हैं हम आप से वादा करते हैं की ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे आम आदमी की गरिमा से खिलवाड़ हो और बदमाशों को राहत मिले. दहेज़ उत्पीडन के मामले पहले जिला परामर्श केंद में सुने जाते हैं उसके बाद पुलिस के पास आते हैं . उ.प्र. में पुलिस संवेदनशील है आम जनता जागरूक और अधिकारी जिम्मेदार.
रमेश कुमार सिरफिरा Shivraj Prajapati जी, क्या यह दिल्ली की तरह से "वुमंस सैल" का बदला हुए रूप का नाम ही "जिला परामर्श केन्द्र" है. यदि हाँ तो अवश्य ही जिला परामर्श केन्द्र में भी सौदेवाजी होती है. लडके का पक्ष सुना ही नहीं जाता होगा. जो अधिकारियों का मुँह भर सकता है या "बड़ी सिफारिश" लगवा सकता है. उसका ही पक्ष सुनते है. 
चर्चित निशा शर्मा केस भी यू.पी. का ही है. उसमें फंसे मेरे मित्र को नौ साल "अदालत" में चले मामले में दोषी नहीं माना. लेकिन इन नौ साल में उसका कैरियर बर्बाद हो गया. नौ साल कोर्ट के चक्कर लगाते हुए लाखों रूपये खर्च हो गए. क्या बिगाड़ लिया यू.पी. पुलिस और सरकार ने "निशा शर्मा" का ? क्या ठोस सबूत ना होते हुए भी लड़की द्वारा केस दर्ज करवाने की जिद पर "जिला परामर्श केन्द्र" इंकार कर पाता है ? वो बेचारे कानून से बंधे हुए होते है और केस दर्ज करने की कार्यवाही कर देते हैं. मैं आपको अपना उदाहरण देकर समझता हूँ कि थाना-कीर्ति नगर की वुमंस सैल के जाँच अधिकारी राधेश्याम ने मेरे सामने अपनी सीनियर को कहा था कि मैडम लड़की के पास कोई ठोस सबूत नहीं है अपनी बात साबित करने के लिए और लडके के पास ठोस सबूत है. अपनी बात साबित करने के लिए जबकि हमने लडके से इतनी बातें भी नहीं की है. लेकिन फिर भी मेरे ऊपर केस दर्ज है. उनका कहना था कि हमारी मजबूरी है केस दर्ज करना.  
आप बुरा ना माने यू.पी. पुलिस के बारें में कहावत मशहूर है कि वो तो गूंगे से बुलवा लेती है कि उसने अपराध किया है. जो उसने किये ही नहीं होते है. मैं सारे यू.पी. पुलिस की बात नहीं कर रहा हूँ. यदि आपको सिर्फ अपने जिले के अधिकारियों पर विश्वास है तो आप क्यों सार्वजनिक वादा करने से पीछे हट रहे है. कर दीजिए एक वादा इमानदारी के नाम. सच कहता हूँ पूरे देश में आप एक नई मिसाल कायम कर देंगे. आपके इलाके में जितने केस (दहेज प्रताडना) दर्ज है उनकी हकीकत भी सामने आ जायेगी. आज मैं भी अपने आपको ईमानदार पत्रकार कह सकता हूँ मगर जब सब पत्रकारों पर बात आती है. तब मैं भी निशब्द हो जाता हूँ, क्योंकि कुछ पत्रकारों ने अपनी "कलम" को कोठे की वेश्या बना दिया है. यदि आपकी तरह से हर बड़ा अधिकारी सार्वजनिक वादा करने लग जाए तो हम अपराध (दहेज प्रताडना)मुक्त भारत की कल्पना कर सकते हैं. मैं कभी नहीं कहता कि पुलिस किसी दोषी को छोड़े मगर किसी निर्दोष को "रिश्वत" के लालच में या "सिफारिश" के दबाब में शोषित भी ना करें. बाबा रामदेव की रामलीला मैंदान की घटना इसका उदाहरण है. थाने में बलात्कार की घटना (लखनऊ) भी यू.पी. ही की है. क्या वहाँ के थानाध्यक्ष का कोई कुछ बिगाड़ लेगा. वो कानून जानता है आरोप पत्र में तकनीकी कमियां करवा देगा. जैसे-जीप में दस पेटी शराब पकड़ी गई लेकिन लिख दिया जाता है स्कूटर पर दस पेटी शराब ले जाते हुए पकड़ा गया. यह सिर्फ उदाहरण है सिर्फ समझाने के लिए.जिससे आप अच्छी तरह से वाफीक होगें. मैं तो फिर वहीँ कहूँगा कि-" आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें. धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है".
रमेश कुमार सिरफिरा Shivraj Prajapati जी, आप सच का सामना नहीं कर पाए अपनी "वाल" से हमारी पोस्ट ही हटा दी. क्या इसी को "इंसाफ" कहते हैं. आप इस लिंक (नीचे) को पढ़ें यह आपके यू.पी. ही का है. अब मुझे पता कि आप जल्द ही मुझे अनफ्रैंड कर देंगे. लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मगर सच से मुँह नहीं चुराऊंगा. 
रमेश कुमार सिरफिरा Shivraj Prajapati का कहना है कि जैसी आप की इच्छा .....और आपको जो कहना है कह सकते है हम अपने दायित्त्वों का निर्वहन निष्ठा और इमानदारी से करते रहेंगे....जो गलत है गलत है और जो सही है सही है...इसके अलावा और कोई कमेन्ट नहीं कर रहा और इस पोस्ट भी हाईड(हटा) कर रहा हूँ. 
 रमेश कुमार सिरफिरा Shivraj Prajapati ji, यदि आप ईमानदार है तो आप पोस्ट को हटाकर अपनी कैसी छवि बना रहे है. मैंने भी कोई गलत नहीं कहा और ....जो गलत है गलत है और जो सही है सही है.. बस जो गलत है उसको गलत कहा है और जो सही है उसको सही कहा है. तब आप पोस्ट हटाकर क्या साबित कर रहे हैं ? अब मुझे केसों और जेल से डर नहीं लगता है. मौत आज भी आनी है और कल भी आनी है फिर डर कैसा ? डरता तो वो है जो गलत करता है.
Priti Gupta Ramesh ji ap ke vichar bhut ache h
Upasna Siag रमेश जी आपके साथ जो बीता वह बहुत अफ़सोस जनक है . हमारे देश में कानून का दुरूपयोग करने वाले ज्यादा है . जबकि जिनके लिए बने है उनको यह ज्ञात भी ना होगा . लेकिन जब आप गलत नहीं है तो आपको न्याय अवश्य ही मिलेगा . हालांकि आपने जो निर्दोष हो कर भुगतान किया है उसकी भरपाई नहीं होगी ...मेरी शुभकामना आपके साथ हैं ...
रमेश कुमार सिरफिरा Upasna Siag जी, आपका कथन सही है कि हमारे देश में कानून का दुरूपयोग करने वाले ज्यादा है . जबकि जिनके लिए बने है उनको यह ज्ञात भी ना होगा. असली पीड़ित के पास तो ना रिश्वत और ना सिफारिश होती है. कई बेचारे वकील की फ़ीस तक नहीं जुटा पाते हैं. मैंने अपनी पत्रकारिता के दौरान ऐसे कई अनुभव देखें है. एक स्वंय का हमारा भी रहा है. जब मेरी बड़ी बहन को सुसराल वालों ने सन-1985 में जलाकर मार दिया था. तब हमारा परिवार आर्थिक समस्या से जूझ रहा था. क्या ऊपर की अन्य टिप्पणी भी पढ़ी है. क्या आज सरकार में बैठे सांसद ने अपनी कार्यशैली द्वारा ऐसे हालत नहीं बना दिए है कि सभ्य आम आदमी और निर्दोष व्यक्ति हथियार उठाने के लिए मजबूर हो गया है. आज अदालतों की जनसंख्या के हिसाब से कितनी कमी नहीं है. जिसके कारण देरी से मिलने वाला न्याय, न्याय ना होकर अन्याय ही साबित होता है. मैंने ऊपर एक टिप्पणी में चर्चित निशा शर्मा के केस का भी जिक्र किया है.
Harshit Sufi इस कानून का जमकर दुरुपयोग हो रहा है आजकल
Kartik Zaveri दहेज दूषण ही है...!!!
Shreenath Alok सर मै आपके दहेज़ प्रथा वहिष्कार का सम्मान करता हूँ ..लेकिन क्या माँ बाप के संपत्ति-जायदाद में लडकी का कोई अधिकार नहीं ..?? यदि हाँ तो वही दहेज है और अगर ना तू ये एक जातिया है.. यदि संपत्ति में बेटा का अधिकार है तू बेटी का क्यूँ नहीं .....??  मेरा तो यही मान ना है की बेटी का भी उतना ही अधिकार है जितना के एक बेटा का ... मै भी दहेज के खिलाफ हूँ लेकिन क्या एक बेटी अपने घर से खाली हाथ चली जाई या वो सही है या फिर एक बेटी अपने अधिकार ले कर जाये वो सही है ..??
 
आप अंधे जजों के लिए आप एक लिंक जरूर पढ़े :-न्याय हो, तो हो और न हो,तो न हो  यहाँ पर मेरी टिप्पणी :-मुझे जज और क्लर्क का अज्ञान देखकर ऐसा लगता है कि अपनी अकल से नहीं बल्कि परीक्षा मे नकल से पास हुए है और नौकरी सिफारिश करके या रिश्वत देकर लगवाई है. आपने सच कहा है कि उस न्यायाधीश से कभी कोई यह नहीं पूछेगा कि उस ने खुद अपने ही न्यायालय का अमूल्य समय क्यों बरबाद किया? और यह भी नहीं पूछेगा कि उस गलत टिप्पणी करने वाले क्लर्क के विरुद्ध क्या कार्यवाही की गई।
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बुधवार, अक्तूबर 24, 2012

दहेज न लेने पर भी सजा मिलती है


दोस्तों, दहेज न लेने पर भी सजा मिलती है मानो ना मानो मगर यह सच है. मैं दहेज के प्रति ऐसे विचार रखता था कि दहेज लेने से पूरी जिंदगी नहीं चलती है बल्कि अपने हाथों की कमाई से चलती है. मैंने एक ईमानदार, स्वाभिमानी पत्रकार व जैन धर्म का अनुयायी होकर दहेज प्रथा का विरोध करते हुए या यह कहूँ दहेज प्रथा पर विचार ( नीचे फोटो में लिखी बातों पर) करते हुए, बिना किसी प्रकार का दिखावा करते हुए और बिना किसी प्रकार का दहेज लिए ही "कोर्ट मैरिज"(प्रमाण पत्र की फोटो ऊपर देखें) की थी. 
लेकिन महिलाओं के हित में बनाये कानूनों के दुरूपयोग के चलते हुए आज मैं अपनी पत्नी और उसके परिजनों द्वारा दहेज मंगाने और दहेज का सामान (जो मुझे मिला ही नहीं) नहीं लौटने के झूठे केसों (धारा 498A और 406) में अब तक तिहाड़ जेल में एक महीना रहकर आ चूका हूँ और अब तक फँसा हुआ हूँ. आज मेरे पास वकील द्वारा जजों को सच बताने तक के लिए पैसे (वकीलों की फ़ीस) नहीं है, क्योंकि झूठे केसों के कारण अपने कार्य में ध्यान नहीं लगा पाता था. जो अब बंद हो गया है. हमारे देश की न्याय व्यवस्था में न्याय की उम्मीद करना भी बेमानी है. आज मुझे कोर्ट से मिलती है तो तारीख पर तारीख. आज समाज में दहेज कानून सुसराल वालों को ब्लैकमेल करने का हथियार बनता जा रहा है. अंधे जजों और पुलिस वालों का तो कहना ही क्या ?

एक मेरा छोटा उदाहरण देखें-मेरे सुसराल वालों ने मुझे दो फ्रिज और दो कलर टी.वी आदि और लाखों रूपये का "सोना" व हजारों रूपये नकद दिया. जिनकी कोई रसीद नहीं है. जबकि मैंने कभी अपने माता-पिता से भी "एक रुपया" अपना व्यवसाय करने के लिए नहीं लिया था. मैंने एक टी.वी और एक फ्रिज व गृहस्थी का सारा सामान अपने पैसों से खरीदा था. जिसके पक्के बिल मेरे पास है और जैन धर्म के गुरुओं से मैंने "नियम" ले रखा था कि "सोना-चांदी" की वस्तुओं को अपनी 35 साल तक आयु तक धारण नहीं करूँगा और उसके बाद "अपने धन" से खरीदा हुए सोना-चांदी धारण करूँगा अर्थात सोना-चांदी का "त्याग" किया हुआ था. हम पति-पत्नी तीन टी.वी और तीन फ्रिज प्रयोग करते थे. वो भी एक बारह बाई पन्दह फुट के कमरे में. फिर भी हमारा बिजली का बिल लगभग तीन सौ रूपये आता था. क्या आप इस बात पर विश्वास करेंगे कि एक कोर्ट मैरिज में लड़की के माँ-बाप इतना सामान देते हैं? लेकिन फिर भी मेरे ऊपर दहेज के लिए परेशान करने और दहेज का सामान ना लौटने आदि के अनेकों केस (एफ.आई.आर नं. 138/2010 Dated 13-5-2010 थाना-मोतीनगर, दिल्ली और गुजारा भत्ता आदि के अदालत में चल रहे है) दर्ज है. कोई भी पुलिस अधिकारी और जज इन बातों को सुनने के लिए तैयार नहीं है.
दोस्तों  यह सब मैंने अपनी फेसबुक की "वाल" पर लिखा था. उसके बाद मेरे अन्य दोस्तों/शुभचिन्तकों की टिप्पणी आई. उसमें से कुछ टिप्पणी और उसकी प्रतिक्रिया यहाँ पर रख रहा हूँ.

Raj Bhatia रमेश भाई आप की बात से सहमत हुं ओर जानता हुं आप सच बोल रहे हे, असल मे कुछ लोग सीधे साधे लोगो को मुर्ख समझते हे, ओर अपने साथ दुसरो का जीवन भी खराब कर लेते हे.... चलिये कभी तो सुबह होगी आप निडर रहे...
 Subhash Chandra Gupta Jai sir ! mai apke dard ko samaz skta hu kyunki dahej pratha kanun adami ko sirf fasane k liye hi bana hua hai. haqikat me galti chahe patni ki hi ho phir bhi fasna parta hai pati ko hi. uper se hamare desh ka kanun to umda kanun hai jo salon laga deta hai nyay dene me. phir bhi aap bharosa rakhein uper wala jald hi aapke haq me faisla karega. Har Ek,Raat ke baad ek Nai Subah bhi hoti hai usi tarah aapki jindagi me bhi nai subah ki shuruaat ho chuki hai.
रमेश कुमार जैन @सुभाष चन्द्र गुप्ता जी, आपका आभार. यह भी जानता हूँ कि हर एक रात के बाद एक नई सुबह आती है. लेकिन अदालत से मुझे और पांच साल बाद न्याय मिला तो क्या वो मेरे लिए न्याय ना होकर "अन्याय" नहीं होगा.
 Tara Jain Aaj mahilaon & shadi shuda aurton ko jitne kanooni adhikar de diye gaye hain, ye shubh sanket nahi hai. Jyadatar cases mein vivih ke pratham teen varsho mein sambandh-vicchhed dekhne me aa rahe hain.
हिमाँशु गर्ग हिंदू रमेश जी आजकल के समय में कानून से किसी भी प्रकार की उम्मीद रखना रेत का पूल बनाने जैसा है, हम और हमारी सहानुभूति आपके साथ है किसी भी प्रकार हम आपके काम आ सके हमारा सौभाग्य होगा
Hemant Jain please visit www.498a.org once .
रमेश कुमार जैन Hemant Jain जी, लिंक देने के लिए आभार. लेकिन उपरोक्त वेबसाईट "अंग्रेजी" में है. आप उनतक यह बात पहुंचाए कि इसको हिन्दी में भी बनाये. जो धारा 498A का पीड़ित होता है उसको इतनी अंग्रेजी नहीं आती है और आपकी मदद केवल कुछ पढ़ें-लिखें व्यक्तियों तक ही पहुँच पाती है. इसको हिन्दी में बनाकर इसका विस्तार करें. अंग्रेजी में होने के कारण मेरे लिए कोई उपयोगी नहीं है. लेकिन फिर भी कुछ लोगों को इस लिंक से मदद मिलेगी.
बबीता वाधवानी -
बहुत दुख हुआ पढकर कि बिना दहेज मांगे आपको जेल जाना पडा। अजीब है दुनिया मैं तो कहती हूँ शान्ति से खुद भी जीना चाहिए और दूसरो को भी जीने देना चाहिए । 

रमेश कुमार जैन बबीता वाधवानी जी, पुलिस अधिकारीयों की अपनी मजबूरी होती है कि इन्हें "दबाब" कार्य करने पड़ते है. ऐसा मैं खुद अपने मामले में देख चूका हूँ. देखें-मैं आपको अपना उदाहरण देकर समझता हूँ कि थाना-कीर्ति नगर की वुमंस सैल के जाँच अधिकारी राधेश्याम ने मेरे सामने अपनी सीनियर को कहा था कि मैडम लड़की के पास कोई ठोस सबूत नहीं है अपनी बात साबित करने के लिए और लडके के पास ठोस सबूत है. अपनी बात साबित करने के लिए जबकि हमने लडके से इतनी बातें भी नहीं की है. लेकिन फिर भी मेरे ऊपर केस दर्ज है. उनका कहना था कि हमारी मजबूरी है केस दर्ज करना. उनकी इस मजबूरी ने मुझे आज बर्बाद कर दिया और बिना कसूर के  "जेल" का दाग लगा दिया. लेकिन इतने घटिया आरोप (दहेज मंगाने) के लिए जेल जाना सहन नहीं हो रहा है. इसका सारी जिंदगी अफ़सोस रहेगा. जब अपने ही इतना कष्ट देते है तब अच्छे भले आदमी का दिमाग खराब हो जाता है. अगर मुझे कभी अपनी लेखनी के लिए जेल जाना पड़े या "फांसी" भी चढ़ना पड़े तो इतना अफ़सोस नहीं होगा.
दोस्तों, अभी टिप्पणियाँ और भी है, उनको अगली पोस्ट में 
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शुक्रवार, जुलाई 20, 2012

जिन्दा रहो वरना जीवन लीला समाप्त कर लो

दहेज अधिनियम के कानूनों की धारा 498A और 406 आदि के दुरूपयोग से पीड़ित बेचारे पतियों का कहना है कि-आज पुलिस और प्रशासन को सँभालने के लिए सबसे पहले पैसो की जरुरत होती है और वो हमसे पहले ही छीना जा चूका है या हमारी नौकरियां छूट चुकी है या हमारे व्यवसाय बंद हो चुके है. अब हमारे पास दो ही विकल्प है कि जब तक प्रताड़ित हुआ जाये या यूँ कहे कि जब तक सहन किया जाये जब तक जिन्दा रहो वरना अपनी जीवन लीला समाप्त कर लो. 

मेरा कहना है कि क्या इससे समाज से यह समस्या खत्म हो जायेगी ? इसके लिए आज कुछ ऐसा करने की जरूरत है कि कोई महिला अपने पति पर झूठे केस दर्ज कराने से पहले दस बार सोचें. जब एक शादीशुदा महिला खुदखुशी करती हैं तब उसके परिजनों के मात्र यह कहने से कि-उसको दहेज के लिए तंग किया जाता था. इसलिए आत्महत्या के लिए मजबूर हुई है. पति और उसके सभी परिजनों पर केस दर्ज करके सबको जेल में डाल दिया जाता है. मैंने खुद तिहाड़ जेल में देखा(आठ फरवरी से सात मार्च 2012 ) है. लेकिन जब एक शादीशुदा पुरुष घरेलू क्लेश के कारण “आत्महत्या” करता है तब पत्नी और उसके परिजनों के ऊपर (एक आध अपवाद को छोड़कर) केस दर्ज क्यों नहीं होता है ? हमारे देश में इस प्रकार का भेदभाव का कानून क्यों है ?
                            मेरी पत्नी के अनुसार मैं खुद कितना बुरा इंसान हूँ. यह आप मेरे खिलाफ एफ.आई.आर. पढ़ (नीचे) पता चल जायेगा. दोस्तों ! मुझे नहीं पता आप मुझे कितना बुरा और झूठा इंसान मानते है. इसका फैसला लेने से पहले मेरे ब्लोगों और फेसबुक की मेरी "वाल" आदि जरुर पढ़ें. मेरे विचारों से अवगत जरुर हो जाए. मेरे खिलाफ झूठ और बिना सबूतों के दर्ज एफ.आई.आर. जिसमें मेरे नाम के साथ ही मेरे बड़े भाइयों के साथ ही मेरी भाभी का नाम भी दर्ज किया गया है. हमारे देश के कानूनों में एक औरत को अपने सुसराल वालों का झूठा नाम(पचपन नाम) लिखवाने की अनुमति मिली हुई है.मगर एक पत्रकार को किसी महिला की पहचान उजागर करने की मनाही है. इसलिए मैंने अपनी पत्नी का नाम,एड्रेस को इस एफ.आई.आर. से हटा दिया है.
आज कुछ लड़कियाँ और उसके परिजन धारा 498A और 406 को लेकर इसका दुरूपयोग कर रही है. हमारे देश के अन्धिकाश भोगविलास की वस्तुओं के लालच में और डरपोक पुलिस अधिकारी व जज इनका कुछ नहीं बिगाड पाते हैं क्योंकि यह हमारे देश के सफेदपोश नेताओं के गुलाम बनकर रह गए हैं. इनका जमीर मर चुका है. यह अपने कार्य के नैतिक फर्ज भूलकर सिर्फ सैलरी लेने वाले जोकर बनकर रह गए हैं. आप लेखक से फेसबुक पर जुड़ें

सोमवार, जुलाई 16, 2012

क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ?

 भारत देश में ऐसा राष्टपति होना चाहिए जो देश के आम आदमी की बात सुने और भोग-विलास की वस्तुओं का त्याग करने की क्षमता रखता हो. ऐसा ना हो कि देश का पैसा अपनी लम्बी-लम्बी विदेश यात्राओं में खर्च करें. इसका एक छोटा-सा उदाहरण माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी है. जहाँ पर किसी पत्र का उत्तर देना भी उचित नहीं समझा जाता है. इसके लिए मेरा उपरोक्त उदाहरण देखें. जो मैंने पिछले दिनों लिखा था. जिसका Ref no.( RPSEC/E/2012/06761) dated 09/05/2012 है.
माननीय राष्ट्रपति जी, मैंने दिनांक 6/6/2011(स्पीड पोस्ट रसीद नं. ED270500410IN) को आपको पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु की मांग की थी और वोमंस सेल द्वारा परेशान किये जाने पर भी मैंने दिनांक 11/3/2010(स्पीड पोस्ट रसीद नं. ED919796753IN) को आपको पत्र भेजकर मदद करने की मांग की थी. अब लगभग एक साल और दो साल मेरे भेजे पत्र को हो चुके है. आपके यहाँ से कोई मदद नहीं मिली. क्या अब मैं अपना जीवन अपने हाथों से खत्म कर लूँ. कृपया मुझे जल्दी से जबाब दें.
 मैंने जब अपने वकीलों या अनेक व्यक्तियों को अपने केसों के बारें में और अपने व्यवहार के बारे में बताया तब उनका यहीं कहना था कि आपको अपनी पत्नी के इतने अत्याचार नहीं सहन करने चाहिए थें और उसका खूब अच्छी तरह से मारना चाहिए था. लगभग छह महीने पहले आए एक फोन पर मेरी पत्नी का कहना था कि-अगर तुमने कभी मारा होता तो तुम्हारा "घर" बस जाता. क्या मारने से घर बसते हैं ? क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ? क्या कोई महिला बिना मार खाए किसी का घर नहीं बसा सकती है ? इसके साथ एक और बिडम्बना देखें-मेरे ऊपर दहेज के लिए मारने-पीटने और अश्लील फोटो / वीडियो बनाने के आरोपों के केस दर्ज है और एक महीना जेल में भी रहकर आ चूका हूँ. मेरी पत्नी के पास कोई अश्लील फोटो/वीडियो के सबूत नहीं है. केस दर्ज होने के डेढ़ साल एक दिन फोन कहा था कि मैंने नहीं लिखवाया वो वकील ने लिखवाया है , क्योकि हमारा केस ही आपके खिलाफ दर्ज ही नहीं हो रहा था. फिर आदमी कहीं पर तो अपना गुस्सा तो निकलेगा. पाठकों शायद मालूम हो हमारे देश में एक पत्नी द्वारा अपने पति और उसके परिजनों के खिलाफ एफ.आई.आर. लिखवाते समय कोई सबूत नहीं माँगा जाता है. इसलिए आज महिलाये दहेज कानून को अपने सुसराल वालों के खिलाफ "हथिहार" के रूप में प्रयोग करती है और मेरी पत्नी तो यहाँ तक कहती है कि मेरे भाइयों आदि को फंसाने के लिए "वुमंस सैल" वालों ने उकसाया था और एक दिन जब मैं (लेखक) अपनी बिमारी की वजह से "पेशी" पर नहीं गया था. तब उन्होंने मेरी पत्नी का "रेप" तक करने की कोशिश की थी. अब आप मेरी पत्नी का क्या-क्या सच मानेंगे. यह आप बताए. मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक दिन झूठे का मुहँ काला होगा और सच्चे का बोलबाला होगा. मगर अभी तो पुलिस ने मेरे खिलाफ "आरोप पत्र" यानि चार्जशीट भी दाखिल नहीं की है. दहेज मांगने के झूठे केसों को निपटाने में लगने वाला "समय" और "धन" क्या मुझे वापिस मिल जायेगा. पिछले दिनों ही दिल्ली की एक निचली अदालत का एक फैसला अखवार में इसी तरह का आया है. उसमें पति को अपने आप को "निर्दोष" साबित करने में "दस" साल लग गए कि उसने या उसके परिवार ने अपनी पत्नी को दहेज के लिए कभी परेशान नहीं किया और ना उसको प्रताडित किया. क्या हमारे देश की पुलिस और न्याय व्यवस्था सभ्य व्यक्तियों को अपराधी बनने के लिए मजबूर नहीं कर रही है ? मैंने ऐसे बहुत उदाहरण देखे है कि जिस घर में पत्नी को कभी मारा पीटा नहीं जाता, उसी घर की पत्नी अपने पति के खिलाफ कानून का सहारा लेती है , जिस घर में हमेशा पति पत्नी को मारता रहता है. वो औरत कभी भी पति के खिलाफ नहीं जाती,  क्योकि उसे पता है कि यह अगर अपनी हद पार कर गया तो मेरे सारे परिवार को ख़तम कर देगा , यह समस्या केवल उन पतियों के साथ आती है. जो कुछ ज्यादा ही शरीफ होते है.
जब तक हमारे देश में दहेज विरोधी लड़कों के ऊपर दहेज मांगने के झूठे केस दर्ज होते रहेंगे. तब तक देश में से दहेज प्रथा का अंत सम्भव नहीं है. आज मेरे ऊपर दहेज के झूठे केसों ने मुझे बर्बाद कर दिया. आज तक कोई संस्था मेरी मदद के लिए नहीं आई. सरकार और संस्थाएं दहेज प्रथा के नाम घडयाली आंसू खूब बहाती है, मगर हकीकत में कोई कुछ नहीं करना चाहता है.सिर्फ दिखावे के नाम पर कागजों में खानापूर्ति कर दी जाती है. आप भी अपने विचार यहाँ पर व्यक्त करें. लेखक से फेसबुक पर जुड़ें

रविवार, जुलाई 15, 2012

क्या महिलाओं को पीटना मर्दानगी की निशानी है ?



आज वैसे तो 99.98% लोगों का मीडिया और ऑफ कैमरा के सामने कहना है कि अपनी पत्नी को पीटते रहना चाहिए नहीं तो सिर पर सवार हो जाती है. उन्हें ज्यादा प्यार और सम्मान हजम नहीं होता है, जैसा तुम्हारे साथ हुआ है. आप भी अपने विचार व्यक्त करें. दोस्तों, मेरी जिंदगी का 20 जून सबसे बुरा दिन है. जब मैंने सोचा क्या था और हो क्या गया ? आज से सात साल पहले 20 जून 2005 के दिन ही मैंने दहेज विरोधी होने के कारण अपने माँ-पिता की मर्जी के बिना कोर्ट मैरिज की थी. बिना दहेज लिए शादी करने के बाद भी मेरी पत्नी व उसके परिजनों द्वारा दिनांक 13/05/2010 को दर्ज एफ.आई.आर नं. 138/2010 थाना-मोतीनगर, दिल्ली के तहत अपनी पत्नी की अश्लील फोटो / वीडियो बनाने के और दहेज मांगने के झूठे आरोपों के कारण आठ फरवरी से लेकर सात मार्च 2012 तक जेल में रहकर आ चूका हूँ. जिसके कारण अब मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता है और मेरा सारा कार्य बंद हो गया है. डिप्रेशन की बीमारी के कारण किसी भी कार्य में "मन" भी नहीं लगता है. लेखन आदि कार्य के चिंतन और अध्ययन भी नहीं कर पाता हूँ. आज मेरे पास जजों को "सच" बताने के लिए वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए भी नहीं है. मैं भगवान से दुआ करता हूँ कि कभी मेरे किसी भी दोस्त के साथ ऐसे हालात ना बनाये, क्योंकि आज मेरे सामने कुआँ है और पीछे खाई है. मैं आज ना जिन्दा हूँ और ना मर सकता हूँ. बस एक चलती-फिरती लाश बनकर रह गया हूँ.
दोस्तों, क्या महिलाओं को पीटना मर्दानगी की निशानी है ? यदि आपका जबाब "हाँ" है तो मुझे अपने "नामर्द" होने पर फख्र है, क्योकि मैंने अपनी पत्नी को उसकी बड़ी-बड़ी गलती पर मारने के उद्देश्य से "छुआ" भी नहीं था. एक औरत मात्र कुछ भौतिक वस्तुओं और दौलत के लालच में इतना भी नीचे गिर सकती है कि अपने पति पर पैसों के लिए अश्लील फोटो / वीडियो और दहेज मांगने के झूठे इल्जाम तक लगा देती है.यह मैंने अपने वैवाहिक जीवन के अब तक के अनुभव से जाना है.
क्या आपको यह सब झूठ लगता है ? यदि हाँ, तब  एक बार उपरोक्त अब...मेरी माँ को कौन दिलासा देगा ?मुझे इच्छा मृत्यु की अनुमति मिले और  हम तो चले तिहाड़ जेल दोस्तों ! लिंक पढ़ें और फैसला करें कि हमारा लेखन झूठा या सच्चा है. इस लिंक पर आपको मेरे खिलाफ एफ.आई.आर और मेरी गिरफ्तारी का वारंट आदि की फोटो भी मिलेगी. आज कहने को तो शादी को सात साल हो गये मगर पिछले साढ़े तीन साल से अपने मायके में है. उससे पहले भी मेरी पत्नी अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए अधिंकाश समय मायके में ही रहती थीं. महीने एक-दो या चार-पांच दिन अगर मुड होता था तब मेरे पास रहने आ जाती थी. मैंने एक "सुधार" की "उम्मीद" से इतना समय गुजार दिया,क्योंकि मैंने कहीं पढ़ लिया था कि "प्यार" से तो हैवान को भी "इंसान" बनाया जा सकता है. मगर मैं अपनी पत्नी की दूषित मानसिकता को नहीं बदल पाया. इसका मुझे अफ़सोस है. आज की तारीख में मुझे अपने लगभग साढ़े तीन के बेटे से भी मेरी पत्नी और उसके परिजन मिलवाते नहीं है और मेरे पास केस डालने के लिए पैसे नहीं है. 
दोस्तों, लगातार आ रही धमकियों के मद्देनजर ही आज आप सब को बता रहा हूँ कि भविष्य में चाहे किसी भी प्रकार से मेरी मौत (चाहे कोई दुर्घटना हो या हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया जाए ) हो, मेरी मौत के लिए मेरी पत्नी, मेरे सास-ससुर, दो सालियाँ, मेरा साला और मेरा साढू ही जिम्मेदार होंगे. मैंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल को और दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को पत्र लिखें. मगर कहीं से आज तक कोई मदद नहीं मिली है. मुझसे पिछले कुछ समय के दौरान अनजाने में आपके प्रति कोई गलती हो गई हो तो मुझे क्षमा कर देना, क्योंकि इन दिनों मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता हैं. (क्रमश:) लेखक से फेसबुक पर जुड़ें
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